छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ का राजनीति करण हो गया है | यहाँ तो अपने सदस्य पत्रकारों को धोखे में रख पूरे संघ को सत्ता पक्ष को बेच दिया गया है | पता तो यह भी चला है की चंदा - चकोरी , ट्रांसफर , पदोन्नति , व पत्रकारों की दलाली करने से भी नहीं अघाए इस संघ के कब्जेदार अरविन्द अवस्थी ने अगले विधान सभा में संघ से जुड़े दो दलाल पत्रकारों के लिए विधान सभा टिकिट भी मांग ली है | पिछले चार साल से श्रमजीवी पत्रकार संघ भाजपा राजनीतिक पार्टी के कब्जे में है | इसके अध्यक्ष तो पत्रकार है ही नहीं , घोर संघीय प्रजाति के जातिवादी व संप्रदाय वादी चाटुकार किस्म के है ही, जबकि महासचिव तो संघ में जुड़ने से पहले से ही भाजपा के वरिष्ठ नेता व वर्तमान में कोंडागांव जिला के भाजपा अध्यक्ष है | कोई भी पत्रकार किसी राजनीतिक दल से सक्रियता से जुड़ कर निरपेक्ष नहीं रह जाता , परिभाषा के अनुसार श्रमजीवी तो रह ही नहीं जाता ! हाँ बेशरम जीवी जरुर रह जाता है | बल्कि पत्रकार किसी राजनितिक विचारधारा से जुड़ते ही पत्रकार नहीं रह जाता , मुखपत्र वर्कर हो जाता है | बदले में ये प्रदेश भर में पत्रकारों के साथ दमन व गुंडागर्दी के खिलाफ मौन रहने का काम कर रहे है | संघ की बैठक में भी ये खुले रूप से सरकार के खिलाफ लिख रहे पत्रकारों को अपने बल-बचों का ध्यान रखने के लिए कहते है | कई मेहनती , ईमानदार, निरपेक्ष रूप से सक्रिय पत्रकारों को इन्होने उन पर हमला होने से ठीक पहले या तो संघ की सदस्यता से अलग कर दिया , या फिर हमला होने के बाद यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि वह तो हमारा सदस्य ही नहीं है नहीं है
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