शनिवार, 4 जनवरी 2014

ओरछा से बीजापुर तक "मिडिया स्वतंत्रता पदयात्रा " गणतन्त्र दिवस से शुरू और गांधी पुण्यतिथि को संपन्न होगी


पदयात्रा मिडिया के प्रति विश्वसनीयता खोते नक्सलियों के खिलाफ है | माओवादियों से मिडिया की स्वतंत्रता बनाये रखने की अपील के साथ , मिडिया का मुंह दबाने की कोशिश के खिलाफ व निर्भीक - निरेपक्ष होकर पत्रकारिता का माहौल बनाने का सन्देश देने के लिए नारायणपुर जिले के ओरछा से बीजापुर तक पदयात्रा की तिथि 26 जनवरीसे ३० जनवरी 2014 घोषित कर दी गयी है । पद यात्रा गणतन्त्र दिवस से शुरू होगी और गांधी जी की पुण्यतिथि को संपन्न होगी । पदयात्रा का यह अभियान कथित जनताना सरकार के खिलाफ है जो निरपेक्ष मिडिया को अपने कथित जनयुध्द के लिए ख़तरा मानकर कुचलने में वैसे ही लगी है जैसे की छत्तीसगढ़ सरकार । यह पदयात्रा छत्तीसगढ़ की उस सरकार के खिलाफ है जो मिडिया को स्वतन्त्र व निर्भीक वातावरण देने की अपनी जवाबदारी से मुकर गयी है । एक साल के भीतर हमारे दो जन सारोकारों से जुड़े पत्रकारों नेमीचंद जैन और साई रेड्डी को मुखबीर बता नक्सलियों ने मार डाला , वहीँ सरकार ने भी इन्ही पत्रकारों कभी नक्सलियों का साथी बता प्रताड़ित किया । इनमे से एक साई रेड्डी को तो जन सुरक्षा अधिनियम के जन विरोधी कानून के तहत जेल भी भेजा गया । नक्सली हिंसा में मारे गए और भविष्य में मारे जाने वाले साथियों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष जारी है , इसके लिए सभी साथियों से आह्वान किया गया है कि वे अपने मेल , एसएमएस , डाक के माध्यम से प्रदेश के राज्य पाल , मुख्यमंत्री ,विधायक , सांसद , मुख्यसचिव आदि को अलग-अलग पत्र भेजकर मांग करें कि नक्सल हिंसा के शिकार पत्रकार साथी नेमीचंद जैन व साई रेड्डी को शहीद का दर्जा दिया जाये , भविष्य में भी नक्सल हिंसा में वाले साथियों को शहीद का दर्जा देने के लिए अध्यादेश जारी किया जाये । -निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने के लिए पत्रकार साथी साई रेड्डी के नाम से पुरस्कार की घोषणा की जाये , जिन्हे अपनी निर्भीक कलम की वजह से प्रदेश सरकार और नक्सली दोनों की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा ।
इस पदयात्रा में शामिल होने से पहले आप जान लें कि पदयात्रा का लग-भग 65 किमी मार्ग अबुझमाड़ से होकर जायेगा जो मिडिया और सरकार के अनुसार नक्सलियों के प्रभाव का इलाका है । अघोषित रूप से सरकार ने इस इलाके को जनताना सरकार को सौंप रखा है । 50,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाक़े में सरकारें नहीं पहुँच पाई हैं । यह देश का इकलौता इलाका है जो अन - सर्व्ड है । अंदर के गावों व लोगों की संख्या अब भी सरकार के लिए खुद ही प्रश्न बने हुए है । इस आंदोलन में शामिल होना आपकी इच्छा और खुद के रिस्क पर है , हिंसा को आंदोलन का हथियार बताने वालों के मिडिया नीति के खिलाफ यह अपनी तरह का पहला आंदोलन है ।

जिस सरकार ने पहले ही पत्रकारों के लिए सुरक्षित वातावरण देने के लिए कोताही बरत रखी है , उससे हमें किसी सुरक्षा की दरकार नहीं है ।

पदयात्रा में 26 जनवरी को पहला पड़ाव 13 किमी दूर आदेर ग्राम है , जहाँ से 19 किमी दूर जाटलूर 27 जनवरी को दूसरा पड़ाव होगा । सम्भवतः 28 जनवरी को अगला पड़ाव लंका और 29 को कुटरु (जिला- बीजापुर ) हो सकता है । इस पदयात्रा में शामिल होने की सहमति अब-तक आदरणीय गिरीश पंकज , राजीव रंजन प्रसाद , बप्पी राय , तामेश्वर सिन्हा , अब्दुल हमीद सिद्दीकी , प्रभात सिंह , सुधीर तम्बोली आजाद , मनोज ध्रुव , नितिन सिन्हा , याज्ञवल्क्य वशिष्ठ  
Priyanka Kaushal Yadav  , रंजन कुमार , नीलकमल वैष्णव अनिश , संजय शेखर , समीम शेख
का मिल चुका है । जिन अन्य साथियों को इस यात्रा में शामिल होना है वे कृपया इस पोस्ट के कमेंट बाक्स में सहमति प्रदान करें । पदयात्रा में शामिल होने के लिए आपको आवश्यक दवा , हल्का वजन वाला गर्म कपडा और पिट्ठु बैग के साथ 26 जनवरी को तीन बजे तक सीधे ओरछा , जिला -नारायणपुर ( छत्तीसगढ़ ) पहुचना है । इसके लिए आपको रायपुर से जगदलपुर राष्ट्रीय मार्ग -30 में आकर कोंडागांव से 5 किमी पहले नारायणपुर की और मुडना है , और नारायणपुर से 3 किमी पहले छोटेडोंगर - ओरछा मार्ग है । ओरछा के बाद पदयात्रा के मार्ग में पड़ने वाले सभी गांव हर प्रकार से विकास व दूकान मुक्त हैं , अतः आप अपने लिए आवश्यक सामान इससे पहले ले लीजिये ।

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

बड़े मिडिया कर्मियों को गौ हत्या के दोष से मुक्त करो ! भगवान

अब-तक तो ठीक था पर अब गौ हत्या में भी यह जादुई चीज काम आ ही गया । सच में यह बड़ा ही चमत्कारी है ------ हे भगवान रायपुर के उन {जिन्होंने मामला दबाया } बड़े - बड़े मिडिया कर्मियों को गौ हत्या के दोष से मुक्त करो !! बेचारे ---- गलती तुम्हारी भी तो है भगवान !!! आखिर तुमने उन्हें नोट का मोहताज क्यों बनाया ?
मुझे तो तुमने कहीं का नहीं रखा । मेरी गृहस्थी अब तुम्हारे हाथों में है । अब मेरी अर्धांगिनी के सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं दिखाई दे रहा है ? आँखों में आंखे डाल वह पूछ रही है कि इसी दिन के लिए 27-28 वर्ष परिवार की जवाबदारी नहीं निभाई ? परिवार को व खुद की जान तक खतरे में डाल कर इतने वर्षों में खाते में इतना इंतजाम भी नहीं कर पाया कि अचानक बच्चों के बीमार पड़ने पर कुछ हजार रूपये भी जुगाड़ जाये । सवाल तो मै भी अपनी स्वर्गीय दादी से पूछना चाहता हूँ ------? दादी तुम तो कहती थी की जीत अंततः सच्चाई की होती है !!! दादी तुमने पंचतंत्र और धर्मग्रंथों से नैतिकता की कहानी सुना - सुना कर इस दुनिया के लिए मुझे अनुपयोगी बना दिया । दादी तुम्हारी ही बात मानकर हर बार न्याय, पीड़ित , प्रताड़ित के साथ और तुम्हारे दी हुई समझ के हिसाब से अत्याचारियों के खिलाफ ही खड़ा रहने की कोशिश करता हूँ । पर हर-बार अपने आप को अलग-थलग पाता हूँ ------ । क्या करूँ दादी माँ !!! तुम अब आकर देखती क्यों नहीं कि दुनिया तुम्हारे कहे जैसी नहीं है दादी माँ । सब तरफ स्वार्थ । लोग तो बोलतें है कि मै केवल इस्तेमाल की चीज होकर रह गया हूँ । हर कठिन मौके पर काम आने वाले दोस्त , ऐसे मौके पर सर का बाल खींचते देखते रहने वाला बेटा भी अब बड़ा हो गया है । वह अब बड़ी बातें करता है -- कहता है कि मै और मेरा विचार आउट आफ डेट हो गए हैं । अब तो दोस्त भी डराने लगें है कि गौ बलि की बात ज्यादा करने से नरबलि तक बात पहुँच जाएगी । वे बोलते है की एक समय में एक ही मोर्चा खोलूं --- अरे भाई जो दिखता है उससे आँखें कैसे बंद कर लूँ ? दादी अकसर तुम्हारी कहानियों में राक्षस अंततः मारा ही जाता था , उन राक्षसों का प्राण किसी पिंजरे में बंद किसी तोते में या किसी और जगह हुआ करता था । दादी बताओ ना इस बार राक्षस का प्राण कहाँ 
छिपा है ?

तेरे बाज़ू में ताकत है तो मस्ज़िद  को हिला कर देख ,वरना चल मेरे साथ 
मयखाना दो घूंट पी और मस्जिद को खुद - ब - खुद हिलता हुआ देख  

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

देश - प्रदेश भर से कांकेर पहुँच रहे पत्रकार सावधान


कथित फर्जी आंकड़ों के सहारे रोजगार गारंटी के क्रियान्वयन के लिए हाल में ही देश भर में अव्वल रहे कांकेर जिले के भ्रष्ट्र सरपंचों ने प्रदेश भर से पहुँच रहे वसूली बाजों से परेशां होकर चोरिया कांड का फायदा उठाने की ठान ली है । ज्ञात हो कि चोरिया गाँव में भ्रष्ट्राचार के आरोपी सरपंच के साथी ग्रामीणों ने जिला प्रशासन व पुलिस की शय पर हाल में ही एक पत्रकार और नेता की जानकारी अथवा हिस्सा { अभी जाँच जारी है } मांगने पर पिटाई कर दी थी । ये भ्रष्ट्र सरपंच इस बात को लेकर नाराज है कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा विकास कार्य के लिए उपलब्ध कराये फण्ड का बड़ा हिस्सा तो सप्लायर, ठेकेदार ,अधिकारी , बाबू और बड़े नेता खा जा रहे है । उनके हिस्से के बचे-खुचे हिस्से में ड़ाका डालने पत्रकार नुमा जानवर खुलेआम और सूचना कार्यकर्त्ता का लबादा ओढ़ कई लोमड़ी कभी भी गाँव पहुँच उन्हें डराते रहतें है । उनके हिस्से में क्या जेल और बदनामी ही आएगा ? क्या इसी लिए अपना खेत बेचकर उन्होंने चुनाव जीता था ? अब उन्होंने एक होने की ठान ली है । पता चला है कि उन्होंने आज ही कांकेर के नजदीक एक गाँव में बैठक कर निर्णय लिया है कि अब किसी भी गाँव में पत्रकार या सूचना कार्यकर्त्ता नामक जीव को देखते ही धर - बाँध कर मारते हुए थाना तक लाना है । बाकि काम सम्बंधित सीइओ का रहेगा । भ्रष्ट्र सरपंचों ने एकस्वर में सहमति ब्यक्त की है की "आदिवासी" इलाके के "पिछड़े" सरपंचों को एक-दो लाख तक के भ्रष्ट्राचार की छुट मिलिनी चाहिए ।गाँव में घुसने देने अथवा नहीं देने को लेकर जनसंपर्क द्वारा अधिकृत व अधिकारीयों द्वारा अनुसंशित पत्रकारों की सूचि भी सभी ग्राम पंचायतों को उपलब्ध कराये जाने की मांग पर भी चर्चा की खबर है । संभवतः इस आशय का ज्ञापन भी कल जिलाधीश कांकेर को सौंपा जा सकता है । इधर ग्रामीण रिपोर्टिंग करने वाले कुछ जीवट किस्म के पत्रकार इस खबर के बाद अपने दायित्व के निर्वहन को लेकर चिंतित है जबकि सचिव व सरपंच के भरोसे जीवन यापन करने वाले बेरोजगार किस्म के पत्रकार किसी अन्य धंधे में उतरने की सोच रहे हैं । दोनों ही स्थिति से कानून ब्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न हो सकने की सम्भावना दिखाई दे रही है । मार खाने व ब्लेक मेलिंग के आरोप से बचने के लिए कर्मठ व ईमानदार पत्रकार कृपया जिले के जनसंपर्क अधिकारी को सूचित कर अथवा लिखित अनुमति लेकर अथवा निकटम पुलिस थाने में लिखित सूचना देकर अथवा पुलिस अधीक्षक या जिलाधीश अथवा पुलिस अधीक्षक व जिलाधीश को साथ-साथ सूचना देकर व उसकी पावती लेकर ही गाँव में प्रवेश करें । कृपया ध्यान रखें आवेदन में विषय जरुर स्पष्ट करें , जिला प्रशासन और सरकार पहले ही एक से बढ़कर एक खुलासे से परेशान है । जन हित में कुछ मो नंबर जारी है ।
जन सम्पर्क अधिकारी --- श्रीमती अंजू नायक मो --942528991
जिला पुलिस अधिकारी ---राहुल भगत मो --9425285792
जिला कलेक्टर श्रीमती अलरमेल मंगई डी मो --9425532380

रविवार, 24 जून 2012

कृषि विभाग ने खरीद लिया कांकेर की मिडिया


 

वन मंत्री विक्रम उसेंडी व अन्य आदिवासी नेताओं की उपस्थिति में कांकेर हुए किसान सम्मलेन में किसानों के साथ हुआ था धोखा | अनेक किसान बस्तर समाचार के कार्यालय में पहुँच कर रोज स्थानीय अख़बार में उनके साथ हुए अन्याय की खबर नहीं छपने का कारण पूछ रहें है | बीमा भुगतान व अन्य प्रलोभन देकर बुलाये गए किसानो को कार्यक्रम के नाम पर दिन भर भूखा रखा गया |  हजारों किसान के नाम पर भोजन का बिल बनाने वाले कृषि विभाग ने वास्तव में उपस्थित दो -दाई सौ किसानो को भी भोजन उपलब्ध नहीं कराया था | कृषि विभाग ने भोजन के लिए किसानो से वादा किया था |  भोजन नहीं मिलने से नाराज किसानो ने तब हंगामा भी खड़ा कर दिया था, और गुस्से में टैंट फाड़ने और बर्तन तोड़ने की घटना भी घटी थी | इस घटना को एक सप्ताह बीत जाने के  बाद भी किसी अख़बार में जगह नहीं मिली | कृषि विभाग ने आयोजन मद के बड़े हिस्से को अच्छे कवरेज मिलने की आशा में पत्रकारों को बाँट दिया था | किसानो के विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों से पैसे चुराकर इस विभाग द्वारा पिछले कई वर्षों से मिडिया को खरीद कर अनेक घोटाला किया जा रहा है | जिला प्रशासन से लेकर विभागीय मंत्री तक को खुश रखने में सक्षम अधिकारी इस विभाग में एक ही जगह पदस्थापना का रिकार्ड तोड़ कई वर्षों से अंगद की तरह जमे हुए है | किसानों के नाम से राजनीति में वापस आने की कोशिश में लगी कांग्रेस ने भी इस घटना को मुद्दा इसलिए नहीं बनाया क्योकि इस कार्यक्रम में सम्पूर्ण व्यवस्था का ठेका उन्ही के अपनों को जो मिला था | 

आइये आइये लोकतंत्र के स्वयंभू चौथा स्तंभ यानी मीडिया का सरेआम बेशर्मी के साथ नंगा नाच देखिये मात्र दो रूपये में



अगर आपके पास पैसा है और आर्थिक पावर है तो आप न केवल राजनीति को सरेराह नंगा नचवा सकते हैं बल्कि लोकतंत्र के स्वयंभू चौथा स्तंभ यानी मीडिया को भी सरेआम और बेशर्मी के साथ नंगा नाच करवा सकते हैं। एक-दो ही नही, पूरे मीडिया संवर्ग को खरीद सकते हैं। एक साथ संपूर्ण मीडिया के ईमान-धर्म को जैसा चाहेंगे, वैसी दशा-दिशा दे सकते हैं। रिपोर्टर, डेस्क इंचार्ज और संपादक तक आपके पैसे और ताकत के गुलाम बनने से नहीं हिचकेंगे, आपके तलवे चाटने के लिए तैयार रहेंगे। पैसे लगाने वाले मालिक को खबर हो या न हो पर संपादक, रिपोर्टर और डेस्क इंचार्ज का यह त्रिगुट चमकीले नोटों की गड्डियों के लिए नये तथ्य गढ़ सकता हैं, तथ्यों पर पर्दा डाल सकता हैं, ऐसे जंजाल रच जायेंगे जिससे आम आदमी का न केवल हक मारा जायेगा, अपितु आम आदमी दिग्भ्रमित होकर खुद का नुकसान करने के लिए आत्मघाती कदम उठाने के लिए भी विवश होगा।
आम आदमी सोचता है कि जब मीडिया ने प्रमाणित किया है और सच माना हैं, तब अविश्वास करने का कोई सवाल शेष नहीं रह जाता है। पकड़े जाने या संबंधित प्रसंग के बेपर्द होने पर रिपोर्टर, डेस्क इंचार्ज और संपादक का तर्क होता है क्या करें, मालिकों का दबाव था, विज्ञापन मिलता है, इसलिए यह सब करना होता है या फिर स्वीकार करना पड़ता है। नहीं तो नौकरी चली जायेगी। मालिक की आड़ लेकर अपने भ्रष्ट और बिकाउ चरित्र को चक-चक करने का यह खेल अब कुछ ज्यादा ही चल रहा है। मीडिया के इस भ्रष्ट और बिकाउ चरित्र को रोकने के लिए या फिर मीडिया को उसके मूल सिद्धांत से जोड़कर रखने के लिए न तो कोई सशक्त नियामक है और न ही व्यवस्था है। मौजूद नियामक सिर्फ हवाहवाई कार्रवाइयों का ढोल बजाता रहता है। मीडिया यूनियनें सिर्फ अपनी दुकानदारी में फंसी रहती हैं और सरकारी पद पर कैसे पहुंचा जाये पर जंजाल खड़ा करने के लिए सक्रियता दिखाती हैं।
अगर आप उपर्युक्त तथ्यों से असहमत है या आपको उपर्युक्त तथ्य स्वीकार नहीं है तो फिर मैं, अभी हाल ही में रिलायंस और मुकेश अंबानी द्वारा अखबारों को सरेआम नंगा कर अपना स्वार्थ साधने की काबिलियत का एक दिलचस्प दर्शन कराता हूं। रिलायंस और मुकेश अंबानी के झूठ पर अखबारों ने किस प्रकार से पत्रकारिता के सिद्धांत को बेचा, यह भी आप जान जायेंगे। हिन्दी-अंग्रेजी का एक भी ऐसा अखबार सामने नहीं आया जिसने रिलायंस-मुकेश अंबानी के झूठ, स्वार्थ और फरेब द्वारा निवेशकों को भरमाने की खबर पर से पर्दा हटाने की ईमानदारी दिखायी हो। पहले इससे संबंधित प्रसंग पर 23 और 24 अप्रैल को अखबारों की हेडलाइन देख लीजिये………..
रिलायंस इन्डस्ट्रीज कंपनी बनी कर्ज मुक्त इकाई – हिन्दुस्तान (पेज नबंर- 13), मुकेश अबांनी ने निभाया वादा, रिलायंस को बनाया कर्जमुक्त – दैनिक जागरण (पेज नबंर- 11)
मुकेश ने पूरा किया कर्ज से छुटकारा दिलाने का वादा – जनसत्ता (पेज नबंर-10), कर्ज मुक्त कंपनी बनी रिलांयस -  दैनिक भास्कर (पेज नबंर-13), कर्जमुक्त रिलायंस – हरिभूमि

यह कुछ अखबारों की हेडलाइनें हैं। इन अखबारों के हेडलाइन देख कर लगता है कि सही में रिलायंस और मुकेश अंबानी की इकाई कर्जमुक्त हो गयी है। पर कहानी कुछ और ही है। रिलायंस इन्डस्ट्रीज न तो कर्जमुक्त कंपनी है और न ही रिलायंस का मालिक मुकेश अंबानी ने शेयर धारकों से कर्जमुक्त होने का वायदा निभाया है। हेडलाइन में अखबारों ने रिलायंस इन्डस्ट्रीज को जरूर कर्जमुक्त कंपनी बना दिया पर पूरी खबर पढ़ने पर अखबारों का दिवालियापन और मुकेश अंबानी के सामने नतमस्तक होने के नजारे को देख सकते हैं, जान सकते हैं। रिलायंस इन्डस्ट्रीज के पास 70 हजार 252 करोड़ की पूंजी है जबकि 68 हजार 259 करोड़ का कर्ज रिलायंस इन्डस्ट्रीज कंपनी के उपर है। जब रिलायंस ने अपने उपर का 68 हजार 259 करोड़ का कर्ज चुकाया ही नहीं है तो फिर वह कंपनी कर्जमुक्त हुई तो कैसे? इतना ही नहीं बल्कि शेयर धारकों से रिलायंस इन्डस्ट्रीज को कर्जमुक्त बनाने का वादा मुकेश अंबानी ने कैसे निभाया? कोई दस माह पहले मुकेश अंबानी ने अपनी कंपनी के शेयरधारकों से कर्जमुक्त कंपनी होने की उपलब्धि हासिल करने का वादा किया था।
सम्पादकों का पतन . . .
सवाल यहां यह उठता है कि एक साथ सभी अखबारों ने रिलायंस इन्डस्ट्रीज को कर्जमुक्त कंपनी बनाने की गिरहबाजी और गिरोहबाजी दिखायी क्यों? खबर का स्रोत रिर्पोर्टर होता है। रिर्पोर्टर खबर लिखता है। खबर डेस्क पर एडिट होती है। डेस्क पर खबर एडिट होने के बाद कई स्तरों पर जांची परखी जाती है। इनमें से किसी अखबार के संपादक ने ऐसी झूठी और रिलायंस इन्डस्ट्रीज को लाभ पहुंचाने वाले तथ्यारोपण पर ध्यान क्यों नहीं दिया। सभी एक ही राह पर चले। सभी एक ही बोली बोले। वह राह और बोली सिर्फ और सिर्फ रिलायंस इन्डस्ट्रीज के पैसे की शक्ति की थी। गलतियां एक दो अखबारों से हो सकती है? एक लाइन से सभी अखबारों में एक ही तरह से तथ्यारोपित और लाभ पहुंचाने वाली खबर छपती है तो शक की सुई रिपोर्टर, डेस्क और संपादक की ईमानदारी पर कैसे और क्यों नहीं उठेगी? यह माना जा सकता है कि अखबारों में अब संपादक नाम की संस्था का पतन हो गया है। अखबारों में गैरजिम्मेदार, चापलूस और पैरोकार टाइप के रिपोर्टरों, डेस्क इंचार्जो और संपादकों का कब्जा हो गया है।
खबर की हेडिंग यह होनी चाहिए थी . . .
खबर की मेन हेडिंग – रिलायंस इन्डस्ट्रीज और मुकेश अंबानी की कर्ज से अधिक पूंजी मात्र दो हजार करोड़ है, शेयरधारको से वायदा खिलाफी, झूठ का प्रत्यारोपन

अगर इस हैडिंग से खबर छपती तो . . .
अगर अखबारों में यह खबर छपती कि रिलायंस इन्डस्ट्रीज और मुकेश अंबानी के पास मात्र दो हजार करोड़ की ही पूंजी है तब रिलायंस इन्डस्ट्रीज और मुकेश अंबानी की विश्वसनीयता सीधेतौर धड़ाम से नीचं गिरती। इतना ही नहीं बल्कि शेयर धारकों में बैचने उठती। शेयर धारकों को अपने पैसे डूबने का डर होता। रिलायंस के शेयर भाव का पतन हो जाता। रिलायंस के शेयरधारक अपने शेयर बेचने के लिए शेयर मार्केट में धमाचौकड़ी मचा देते। दस माह पूर्व मुकेश अंबानी ने अपनी कंपनी को कर्जमुक्त बनाने का वायदा शेयर धारकों से किया था वह सीधे तौर उनके साम्राज्य के लिए फांसी का फंदा बनता। छोटे-छोटे शेयर धारक जिनकी खून और पसीने की कमाई लगी हुई है वे मुकेश अंबानी से सवाल करते। छोटे-छोटे शेयर धारकों के सवालों का जवाब मुकेश अंबानी देते तो क्या देते? सबसे बड़ी बात तो यह है कि रिलायंस इन्डस्ट्रीज के शेयर धारक अपने शेयर बेचने और पैसा अन्य जगह लगाने के लिए तत्पर होते। अगर ऐसा होता तो रिलायंस एकाएक दिवालिया के कगार पर पहुंच जाती और मुकेश अंबानी की आकाश से बातें करने वाली अट्टालिका तक बिक जाती। रेटिंग नियामकों पर रिलायंस की मार्केटिंग और विश्वसनीयता की रेटिंग गिराने का दबाव होता।
खबर छपी कैसे ?
रिलायंस इन्डस्ट्रीज और मुकेश अंबानी ने खबर छपवाने के लिए करोड़ो रूपये खर्च किये हैं। कहा यह जाता है कि रिलायंस की मीडिया प्रचार कंपनी ने खुद यह खबर तैयार की थी। खबर तो बनायी ही गयी थी, इसके अलावा खबर के साथ कुछ सजेंस्टिंग हेडिंग भी लगाये गये थे। यह खबर सिर्फ अखबारों ही नहीं बल्कि संवाद एजेंसियो को भी उपलब्ध करायी गयी थी। रिलायंस इन्डस्ट्रीज और मुकेश अंबानी की पीआर कंपनी ने इसके लिए बड़ी एक्सरसाइज की थी। नीरा राडिया प्रकरण से सबको ज्ञात ही है कि पीआर कंपनियां अपनी तिजोरी भरने वाली आर्थिक शक्तियों के लिए क्या – क्या नहीं करती है? सीधे तौर पर कहा जाये तो अखबारों के आर्थिक डेस्क के इंचार्ज और संपादक को मैनेज किया गया। कुछ अखबारों में सीधे मालिकों को मैनेज कर लिया गया हो, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। मैं कई अखबारो का संपादक रह चुका हूं। इसलिए मैं अखबारों के मालिकों की मानसिकता और उनकी मनस्थिति से पूरी तरह से अवगत हूं। कई बार मालिकों को खबरों के पीछे छुपी हुई कारस्तानी मालूम नहीं होती है। काबिल और ईमानदार संपादक मालिक को वास्तविकता बता कर रिलायंस जैसी कंपनी की साजिश और तथ्यारोपण का पर्दाफाश कर सकता है और पत्रकारिता की विश्वसनीयता व ईमानदारी की रक्षा कर सकता है। मैंने कई बार इस तरह का सफल प्रयोग किया हैं।
जनता का नुकसान क्या है ?
भूंमडलीकरण के दौर में निजीकरण के दैत्यों का एक मात्र सिद्धांत है : प्रपंच करना, झूठ फरेब परोसना और झूठे ख्वाब दिखाकर आमजन के भविष्य पर डाका डालना है। दुनिया भर में यह बात सच्ची साबित हो रही है। किस तरह एनरोन के बारे में बातें फैलायी गयी थी वह भी जगजाहिर है। दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियों ने एनरोन को उंची रेटिंग दी थी और उसे विश्वसनीय कंपनी बताया गया था। दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियों के सर्टिफिकेट पर एनरोन के शेयरो को उंची कीमत मिलने लगी थी। कुछ ही दिनों के अंदर एनरोन दिवालिया हो गयी थी। शेयरधारकों के रूपये डूब गये। यह तो रहा विदेशी कंपनियों का हाल। अब इंडियन कंपनियों का उदाहरण देख लीजिये। फर्जी बैलेंस सीट पर सत्यम कंपनी के शेयर भाव किस कदर तेज हुए और फर्जी बैलेंस सीट के उजागर होते ही सत्यम कंपनी किस कदर अविश्वसनीयता का शिकार हुई, यह भी सभी को मालूम है। पैसे के बल पर कर्जमुक्त कंपनी होने का तथ्य मीडिया प्रत्यारोपित कराने का सीधा अर्थ छोटे-छोटे शेयरधारकों को लुभाना और उनकी खून-पसीने की कमाई को अपने साम्राज्य में निवेश करने के लिए लालच देकर बटोरना है। निजीकरण के दैत्यों की कुदृष्टि अब ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे-छोटे निवेशकों पर लगी हुई है। शहरी क्षेत्र का निवेशक जहां छानबीन कर निवेश करता है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के निवेशक आकर्षक और मनगढ़न्त विज्ञापनों और समाचारों से प्रभावित होकर निवेश करने के लिए आगे आ जाते हैं। रिलांयस में निवेश करने वालो की संख्या बढेगी। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। भविष्य में रिलायंस के ग्रामीण क्षेत्रों के निवेशकों की गाढ़ी कमाई डूब सकती है। उसी तरह से जिस तरह से एनरोन और सत्यम कंपनी में आम निवेशकों की गाढ़ी कमाई डूबी। यह भी हो सकता है कि आकर्षक विज्ञापन और झूठी खबर के जाल फंसने वाले निवेशकों को उतना मुनाफा नहीं  हो ,जितना उन्होंने अनुमान लगाया होगा और रिलायंस के एजेंटो ने जितना लालच दिया होगा।
पत्रकारों को  वेश्यालय की सुविधा भी देता है रिलायंस
अगर आप रिलायंस की उंगलियों पर नाचते हैं और रिलायंस कंपनी के पैरोकार हैं तो आपको दुनिया के विख्यात वेश्या घरों में भी सैर कराने के लिए वह तत्पर रहता है और सेक्स की इच्छा को तृप्त करा सकता है। यह हवाहवाई बातें नहीं हैं। पुख्ता सबूत है। अभी कुछ दिन पूर्व ही रिलायंस ने बिजनेस भास्कर के पत्रकार स्वतंत्र मिश्रा, दैनिक जागरण के पत्रकार बृज बिहारी चौबे, अमर उजाला के पत्रकार उमेश्वर कुमार, हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार महुआ वेंकटेश, इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार बिसुवा योंयन, न्यूज एजेंसी पीटीआई के पत्रकार जोयता डे सहित हिन्दी और अंग्रेजी के दर्जनों पत्रकारो को सिंगापुर का दौरा कराया था। दौरे कराने का बहाना कुछ और था, पर असली मकसद पत्रकारों को मौज-मस्ती कराना था। सिंगापुर मे कई क्लब ऐसे हैं जहां पर सीधे तौर पर रियल सेक्स जीवंत प्रत्यक्ष प्रदर्शन होता है और देखने वाला पात्र अपनी सुविधा व इच्छा के अनुसार वेश्या सुख का आनंद उठा सकता है और अपनी सेक्स इच्छा को तृप्त कर सकता है। उपर्युक्त इन सभी पत्रकारों को  थाईलैंड के वेश्याधर ‘जेजे क्लब‘ का दर्शन कराया गया। ओरियंटल मसाज सेंटर में महिला मसाजदारों से इन सभी पत्रकारों का मसाज किया। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि विदेशों की सैर कराने के अलावा अपने परिवार हेतु खरीददारी कराने के लिए अनलिमिटेड गिफ्ट वाउचर तक उपलब्ध कराया जाता है। जाहिर सी बात यह है कि अगर पत्रकारों को वेश्याघर तक दर्शन कराने और उपलब्ध कराने का काम रिलायंस करेगा तब पत्रकार रिलायंस की उगलियों पर नाचेंगे ही और पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों की कब्र खोदेंगे ही। पत्रकार पत्रकारिता के मूल सिद्धांत की कब्र खोद भी रहे हैं। रिलायंस ने एक शोध संस्थान भी खोल रखा है, जिसमें शायद पत्रकारों को पटाने के तरीके ढूढने के लिए भी शोध होता है। कई पत्रकार अपनी पत्रकारिता छोड़कर वहां काम कर रहे हैं।
मीडिया में रिलायंस का पैसा
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि प्रिंट ही नहीं बल्कि इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया में रिलायंस का निवेश है। निवेश का स्तर प्रत्यक्ष भी हो सकता है और अप्रत्यक्ष भी हो सकता है। अंदर खाने की बात यह है कि कई अखबारों में रिलायंस ने अघोषित तौर पर पन्ने खरीद रखें हैं, जिसका सालाना भुगतान रिलायंस करता है। रिलायंस की खबर उसी खरीदे हुए पेज पर मनमाफिक तौर पर छपती है। यह पेड न्यूज सरीखा खेल है और इस पेड न्यूज सरीखे खेल से आम निवेशक और आम जनता ही भ्रमित होते है।
चोरी और सीना जोरी
हिन्दी में एक कहावत है ‘चोरी और सीनाजोरी‘। इस कहावत को मीडिया जगत ने अपना मूल आदर्श मान लिया है।मैंने जब 23 अप्रैल को यह झूठी और मनगढ़त खबर पढ़ी तब मैने दैनिक भास्कर अखबार को फोन लगाया। मालूम हुआ कि प्रमुख संपादक हैं नहीं। मैने जब जोर डाला तो दैनिक भास्कर के रिसेप्शनिष्ट ने मेरी बात हरिमोहन मिश्रा से करायी। हरिमोहन मिश्रा दैनिक भास्कर की संपादकों की टोली में हैं। जब मैनें झूठी और मनगढ़त खबर छापने की बात कही तो वे आग-बबुला हो गये। कहने लगे कि आप ही जानते हैं सबकुछ, खबर गलत कैसे हैं? मैंने हरिमोहन मिश्रा को कहा कि पहले आप अपने अखबार में छपी खबर को पढि़ये? थोड़ा शांत होकर हरिमोहन मिश्रा कहते हैं कि आपने बता दिया तो देख लेंगे हम? फिर हमनें सवाल किया कि झूठी और मनगढ़त खबर छापकर रिलायंस को लाभ पहुंचाने के कुकृत्य को लेकर आम पाठकों से माफी मांगेंगे या नहीं? फिर हरिमोहन मिश्रा गुस्से में लाल होकर बोले कि आप हमारे मालिक हैं? इस पर हमनें कहा कि मैं पाठक हूं और मेरा यह अधिकार है। हरिमोहन मिश्रा ने यह कहकर टेफीफोन लाइन काट दी कि पाठक हैं तो जाइये न्यायालय।
रिलायंस के पक्ष में सरेआम बैंटिंग
दूसरा उदाहरण तो और भी विषैला है। रिलायंस के समर्थक पत्रकार रिलायंस के खिलाफ बोलने पर आपको अपमानित कर सकते हैं,  आपको डरा-धमका सकते हैं। इतना ही नहीं बल्कि आपको अनपढ़-गंवार भी साबित कर सकते हैं। मुझे इस तथ्य से दो-चार भी होना पड़ा है। हिन्दी के ब्लोगरों की एक मीटिंग कनाट प्लेस के एम्बेसी रेस्टोंरेन्ट में थी। ब्लोगरों की तिलस्मी दुनिया को समझने के लिए मैं भी उस मीटिंग में उपस्थित था। चर्चाओं के दौरान भड़ास फोर मीडिया डाटकाॅम के सीईओ और मालिक यशवंत सिंह ने मुझसे पत्रकारिता पर विचार रखने का आग्रह किया। मैं रिलायंस के कर्जमुक्त कंपनी होने की झूठी खबर छापने पर प्रकाश डाल ही रहा था कि एकाएक इलेक्टाॅनिक्स पत्रकार ज्ञानवर्द्धन तिवारी बोल पड़ा, खबर कैसे गलत छपी है, हिन्दी के लोग न जाने अपने आपको क्या समझते हैं,पढ़ते नहीं, सिर्फ हंगामा खड़ा करते हैं, मुकेश अंबानी ने शेयर धारकों की मीटिंग में कर्जमुक्त कंपनी होने की बात की थी।  फिर खबर कैसे नहीं छपेगी?  रिलायंस के प्रति उस पत्रकार की स्वामिभक्ति को देख कर। मैने जब पूछा कि रिलायंस ने जब कर्ज चुकता ही नहीं किया तब वह कर्जमुक्त कंपनी कैसे हो गयी? अगर मुकेश अंबानी बोलेगा कि मैं भारत का प्रधानमंत्री हूं तो आप इसे भी छाप देंगे? मै अवाक था। मैं सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित भडास फोर मीडिया डोटकोम के सीईओ और मालिक यशवंत सिंह की खामोशी पर था। यशवंत सिंह से जब मैंने शिकायत की तब उन्होंने कहा कि विष्णु भइया बात को इतना भी नहीं बढ़ाया जाना चाहिए कि भविष्य में फिर मिलने का अवसर भी नहीं मिले। यशवंत सिंह अपने आप को मीडिया में भ्रष्टाचार और अंदर की खबरें छाप कर मीडिया का शंहशाह होने का दावा करता है। उसका यह रूप देखकर मैं चकित था। मीडिया को अपने दायित्व से आगाह करने का दावा करने वाले यशवंत सिंह जैसे लोग भी जब झूठ का साथ देने वालों में शामिल हों जाये तो फिर सच को बोलने और लिखने वालों के सामने समस्या और चुनौतियां कितनी विकराल और विषैली-दुष्कर हो सकती है, यह समझा जा सकता है। यशवंत सिंह बाद में उसी रिलायंस समर्थक पत्रकार ज्ञानवर्द्धन तिवारी के साथ नौ-दो ग्यारह हो गये।
झूठी खबर पर संज्ञान क्यों नहीं?
एक सिद्धांत स्वयं संज्ञान लेने का है। आमतौर पर यह सिद्धांत न्यायिक प्रक्रिया में बहुप्रचलित है। न्यायाधीश किसी बड़ी और उपेक्षित संवर्ग से जुड़ी घटना पर स्वयं संज्ञान लेकर दंड के प्रावधान को सुनिश्चित करते हैं। मीडिया को नियंत्रित करने वाला एक नियामक ‘प्रेस परिषद‘ है। प्रेस परिषद के सदस्य पत्रकार भी होते हैं। नियामकों में आरएनआई और खुद सूचना प्रसारण मंत्रालय भी है। पर किसी ने इस झूठी खबर पर संज्ञान क्यों नहीं लिया। प्रेस परिषद के जो पत्रकार सदस्य हैं, उन्हें यह झूठी खबर क्यों नहीं झकझोर और आंदोलित कर पायी। अगर इसकी सत्यता प्रेस परिषद के अध्यक्ष काटजू के पास रखी जाती तो अखबारों के खिलाफ कार्रवाई संभव हो सकती थी। कम से अखबारों के संपादकों-प्रबंधकों के चेहरे से ईमानदारी का नकाब तो हट जाता। सच तो यह है कि प्रेस परिषद के सदस्य वैसे पत्रकारों को बनाया जाता है जो सरकार की प्रतिकूल नीतियों पर प्रहार करने से बचते है और जनता के मुद्दों पर पानी डालते हैं।
(लेखक – विष्णु गुप्त जाने माने पत्रकार है।)http://www.khabarkosh.com/?p=1436   से साभार 

मंगलवार, 12 जून 2012

छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ का राजनीतिकरण



छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ का राजनीति करण हो गया है | यहाँ तो अपने सदस्य पत्रकारों को धोखे में रख पूरे संघ को सत्ता पक्ष को बेच दिया गया है | पता तो यह भी चला है की चंदा - चकोरी , ट्रांसफर , पदोन्नति , व पत्रकारों की दलाली करने से भी नहीं अघाए इस संघ के कब्जेदार अरविन्द अवस्थी ने अगले विधान सभा में संघ से जुड़े दो दलाल पत्रकारों के लिए विधान सभा टिकिट भी मांग ली है | पिछले चार साल से श्रमजीवी पत्रकार संघ भाजपा राजनीतिक पार्टी के कब्जे में है | इसके अध्यक्ष तो पत्रकार है ही नहीं , घोर संघीय प्रजाति के जातिवादी व संप्रदाय वादी चाटुकार किस्म के है ही, जबकि महासचिव तो संघ में जुड़ने से पहले से ही भाजपा के वरिष्ठ नेता व वर्तमान में कोंडागांव जिला के भाजपा अध्यक्ष है | कोई भी पत्रकार किसी राजनीतिक दल से सक्रियता से जुड़ कर निरपेक्ष नहीं रह जाता , परिभाषा के अनुसार श्रमजीवी तो रह ही नहीं जाता ! हाँ बेशरम जीवी जरुर रह जाता है | बल्कि पत्रकार किसी राजनितिक विचारधारा से जुड़ते ही पत्रकार नहीं रह जाता , मुखपत्र वर्कर हो जाता है | बदले में ये प्रदेश भर में पत्रकारों के साथ दमन व गुंडागर्दी के खिलाफ मौन रहने का काम कर रहे है | संघ की बैठक में भी ये खुले रूप से सरकार के खिलाफ लिख रहे पत्रकारों को अपने बल-बचों का ध्यान रखने के लिए कहते है | कई मेहनती , ईमानदार, निरपेक्ष रूप से सक्रिय पत्रकारों को इन्होने उन पर हमला होने से ठीक पहले या तो संघ की सदस्यता से अलग कर दिया , या फिर हमला होने के बाद यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि वह तो हमारा सदस्य ही नहीं है  नहीं है 

रविवार, 10 जून 2012

छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष पद पर अवैध रूप से काबिज अरविन्द अवस्थी का पूरे प्रदेश में हो बहिष्कार

 तानाशाह अरविन्द अवस्थी का पूरे प्रदेश में बहिष्कार  करें | जिसने भी पत्रकार संघ में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया की बात की उसे संघ से ही निकलने का रास्ता अपनाया गया | अपने दोनों अध्यक्षीय कार्यकाल में अरविन्द अवस्थी अपने साथियों से लड़ाई - भिड़ाई करते रहा | पत्रकारों के साथ तरह-तरह अन्याय  हो रहा है , मगर ये महाशय उलटे पत्रकारों पर हिंसा के जवाबदार सत्ता पक्ष की गोदी में बैठ गया है | 




 इनकी कार्यकारिणी के अधिकांश सदस्य इनके खिलाफ है , फिर भी बेशर्मी की हद पर कर ये पद से चिपक कर बैठ गए है | पूरे प्रदेश से ईमानदार व  निष्ठावान पत्रकारों ने लग-भग इनके संघ से नाता तोड़ लिया है | रायगढ़ , बिलासपुर , जांजगीर , कोरबा , सरगुजा  , व बस्तर के सभी  जिलों में इनका संघ ही  समाप्त हो गया है |

 अध्यक्ष पद : आजीवन पट्टा ?
  वरिष्ठ भाजपा नेता प्रवीर बन्देशा  संघ के महासचिव होने के कारण जुड़े हुये है, जो वैसे भी पत्रकार कम भाजपा नेता है  | राष्ट्रीय पद के लालच में आँखों में पट्टी बांध ध्रितराष्ट्र  की भूमिका में रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे को छोड़ कर [ हालाँकि हमें भरोसा है कि समय कि जरुरत और अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल कर ये वरिष्ठ साथी अब अपनी आँखों से पट्टी खोलेंगे } अब एक भी पत्रकार इस संघ में नहीं बचे , केवल लूट- खसोट  कम्पनी बची है | 

यहाँ प्रस्तुत शिकायत सभी पत्रकार साथियों के ध्यानार्थ प्रस्तुत है  जिसमे कार्यकारिणी के 18 में से दस  सदस्यों का हस्ताक्षर है , पांच अन्य सदस्यों ने भी इस पत्र से बैठक के दौरान फोन पर अपनी सहमति जताई थी |